विविध >> उच्चतर सामान्य मनोविज्ञान उच्चतर सामान्य मनोविज्ञानअरुण कुमार सिंह
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उच्चतर सामान्य मनोविज्ञान...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रस्तावना
‘उच्चतर सामान्य मनोविज्ञान’ का पंचम संशोधित एवं
परिवर्द्धित
संस्करण आपके हाथ में है जो छात्रों एवं सहकर्मियों के सुझाव एवं अपने
पठन-पाठन की अनुभूतियों पर आधृत है। सामान्य मनोविज्ञान की यह एक ऐसी
पुस्तक जो नवीनतम शोधों एवं प्रयोगों के परिणाम के विश्वलेषण पर आधारित
होने के अलावा एक मुश्त बी.ए. ऑनर्स, एम.ए. के छात्रों की आवश्यकताओं को
पूरा करने के साथ-ही-साथ विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं जैसे UGC के NET
(राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा), JRF तथा विभिन्न राज्य के
राज्यस्तरीयपात्रता परीक्षण (State Level Eligibility Test) के परीक्षाओं
के लिए भी उपयोगी है।
इस पुस्तक को चौदह अध्यायों में बाँटकर लिखा गया है। प्रत्येक अध्याय में जिन बिंदुओं पर विचार किया गया है, उनका विश्लेषण काफी सूक्ष्म रूप से एवं गहनता पूर्वक किया गया है। इस सिलसिले में कुछ वरिष्ठ शिक्षकों एवं शोध छाओं का सुझाव एवं समालोचना उत्तम मार्गदर्शन का काम किया है।
इस पुस्तक के लेखन में मुझे जिन लेखकों की कृतियों का सहारा लेना पड़ा है, उनके प्रति मैं काफी आभारी हूँ। इस कार्य में मुझे अपने परिवार के सदस्यों से भी जो सहायता प्राप्त हुई है, उसके लिए मैं उन सबों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
कहा न होगा कि श्री कमला शंकर सिंह जी, मैनेजर, मोतीलाल बनारसीदास, पटना ने इस संस्करण को सँवारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
आशा है पुस्तक का यह वर्तमान संस्करण छात्रों की आवश्यकताओं को हर तरह से पूरा करने में सक्षम होगा।
इस पुस्तक को चौदह अध्यायों में बाँटकर लिखा गया है। प्रत्येक अध्याय में जिन बिंदुओं पर विचार किया गया है, उनका विश्लेषण काफी सूक्ष्म रूप से एवं गहनता पूर्वक किया गया है। इस सिलसिले में कुछ वरिष्ठ शिक्षकों एवं शोध छाओं का सुझाव एवं समालोचना उत्तम मार्गदर्शन का काम किया है।
इस पुस्तक के लेखन में मुझे जिन लेखकों की कृतियों का सहारा लेना पड़ा है, उनके प्रति मैं काफी आभारी हूँ। इस कार्य में मुझे अपने परिवार के सदस्यों से भी जो सहायता प्राप्त हुई है, उसके लिए मैं उन सबों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
कहा न होगा कि श्री कमला शंकर सिंह जी, मैनेजर, मोतीलाल बनारसीदास, पटना ने इस संस्करण को सँवारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
आशा है पुस्तक का यह वर्तमान संस्करण छात्रों की आवश्यकताओं को हर तरह से पूरा करने में सक्षम होगा।
-अरुण
कुमार सिंह
नवम्बर, 2005
विषय-प्रवेश
मनोविज्ञान का स्वरूप एवं कार्यक्षेत्र
प्राक्-वैज्ञानिक काल (Pre-scientific period) में मनोविज्ञान
दर्शनशास्त्र (Philosophy) का एक शाखा था। जब विलहेल्म वुण्ट (Wilhelm
Wundt) ने 1879 में मनोविज्ञान का प्रयोगशाला खोला, मनोविज्ञान
दर्शनशास्त्र के चंगुल से निकलकर एक स्वतंत्र विज्ञान का दर्जा पा सकने
में समर्थ हो सका। मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो प्राणी के व्यवहार तथा
मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes) का अध्ययन करता है। दूसरे शब्दों
में, यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप
से (systematically) प्रेक्षणीय व्यवहार (observable behaviour) का अध्ययन
करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे-चिन्तन,
भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है।
इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं
(mental process) के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। व्यवहार में मानव
व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं
में चिंतन, भाव संवेग एवं अन्य तरह की अनुभूतियों का अध्ययन सम्मिलित होता
है।
लिण्डजे, हॉल थॉम्पसन (Lindzey, hall & Thompson, 1989) ने मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र (scope) की समीक्षा करके बतलाया है कि मनोवैज्ञानिक को तो कई दृष्टिकोणों से श्रेणीकृत किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, उन्हें प्राप्त प्रशिक्षण (training) (जैसे डाक्टरीय उपाधि या एम.ए. की उपाधि आदि) के अनुसार, जहाँ वे कार्य करते हैं, अर्थात विश्वविद्यालय, अस्पताल, स्कूल, निजी सेवा के अनुसार तथा अपनी पेशा से प्राप्त आय (income) के अनुसार उन्हें कई भागों में बाँटा जाता है। परन्तु मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र (scope) को सही ढंग से समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण श्रेणी वह श्रेणी है जिससे यह पता चलता है कि मनोविज्ञान क्या करते हैं ? किये गये कार्य के आधार पर मनोविज्ञानियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है- पहली श्रेणियों में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो शिक्षण कार्य में व्यस्त हैं, दूसरी श्रेणी में उन मनोवैज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर शोध करते हैं तथा तीसरी श्रेणी में उन मनोवैज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर कौशलों एवं तकनीक का उपयोग वास्तविक परिस्थिति में करते हैं। इस तरह से मनोविज्ञानियों का तीन प्रमुख कार्य क्षेत्र है- शिक्षण (teaching), शोध (research) तथा उपयोग (application)। इन तीनों कार्य क्षेत्रों से संबंधित मुख्य शाखाओं का वर्णन निम्नांकित है-
लिण्डजे, हॉल थॉम्पसन (Lindzey, hall & Thompson, 1989) ने मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र (scope) की समीक्षा करके बतलाया है कि मनोवैज्ञानिक को तो कई दृष्टिकोणों से श्रेणीकृत किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, उन्हें प्राप्त प्रशिक्षण (training) (जैसे डाक्टरीय उपाधि या एम.ए. की उपाधि आदि) के अनुसार, जहाँ वे कार्य करते हैं, अर्थात विश्वविद्यालय, अस्पताल, स्कूल, निजी सेवा के अनुसार तथा अपनी पेशा से प्राप्त आय (income) के अनुसार उन्हें कई भागों में बाँटा जाता है। परन्तु मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र (scope) को सही ढंग से समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण श्रेणी वह श्रेणी है जिससे यह पता चलता है कि मनोविज्ञान क्या करते हैं ? किये गये कार्य के आधार पर मनोविज्ञानियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है- पहली श्रेणियों में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो शिक्षण कार्य में व्यस्त हैं, दूसरी श्रेणी में उन मनोवैज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर शोध करते हैं तथा तीसरी श्रेणी में उन मनोवैज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर कौशलों एवं तकनीक का उपयोग वास्तविक परिस्थिति में करते हैं। इस तरह से मनोविज्ञानियों का तीन प्रमुख कार्य क्षेत्र है- शिक्षण (teaching), शोध (research) तथा उपयोग (application)। इन तीनों कार्य क्षेत्रों से संबंधित मुख्य शाखाओं का वर्णन निम्नांकित है-
1.शैक्षिक क्षेत्र(Academic areas)-
शिक्षण तथा शोध, मनोविज्ञान का एक
प्रमुख कार्य क्षेत्र है। इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र के तहत निम्नांकित
शाखाओं से मनोविज्ञानी अपनी अभिरुचि दिखते हैं-
(i) जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान (Life-span developmental psychology)
(ii) मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Human experimental psychology)
(iii) पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Animal experimental psychology)
(iv) दैहिक मनोविज्ञान (Physiological psychology)
(v) परिणात्मक मनोविज्ञान (Quantitative psychology)
(vi) व्यक्तित्व मनोविज्ञान (Personality psychology)
(vii) समाज मोनविज्ञान (social psychology)
(viii) शिक्षा मनोविज्ञान (Educational psychology)
(ix) संज्ञात्मक मनोविज्ञान (Cognitive psychology)
(x) असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal psychology)
(i) जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान (Life-span developmental psychology) –
बाल मनोविज्ञान का प्रारंभिक संबंध मात्र बाल विकास (Child development) के अध्ययन से था परन्तु हाल के वर्षों में विकासात्मक मनोविज्ञन में किशोरावस्था, वयस्कावस्था तथा वृद्धावस्था के अध्ययन पर भी बल डाला गया है। यही कारण है कि इसे जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान कहा जाता है। विकासात्मक मनोविज्ञान में मनोविज्ञानी मानव के लगभग प्रत्येक क्षेत्र जैसे- बुद्धि, पेशीय विकास, सांवेगिक विकास, सामाजिक विकास, खेल, भाषा विकास का अध्ययन विकासात्मक दृष्टिकोण से करते हैं। इसमें कुछ विशेष कारक जैसे- आनुवंशिकता, परिपक्वता, पारिवारिक पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक अन्तर (socio-economic differences) का व्यवहार के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है। कुल मनोविज्ञानियों के 5% मनोवैज्ञानिक विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं।
(ii) मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Human experimental psychology)-
मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान मनोविज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ मानव के उन सभी व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है जिस पर प्रयोग करना संभव है। सैद्धान्तिक रूप से ऐसे तो मानव व्यवहार के किसी भी पहलू पर प्रयोग किया जा सकता है परन्तु मनोविज्ञानी उसी पहलू पर प्रयोग करने की कोशिश करते हैं जिसे पृथक किया जा सके तथा जिसके अध्ययन की प्रक्रिया सरल हो। इस तरह से दृष्टि, श्रवण, चिंतन, सीखना आदि जैसे व्यवहारों का प्रयोगात्मक अध्ययन काफी अधिक किया गया है। मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में उन मनोवैज्ञानिकों ने काफी अभिरुचि दिखलाया है जिन्हें प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का संस्थापक कहा जाता है। इनमें विलियम वुण्ट, टिचेनर तथा वाटसन आदि के नाम अधिक मशहूर हैं।
(iii) पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Animal experimental psychology) –
मनोविज्ञान का यह क्षेत्र म�
(i) जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान (Life-span developmental psychology)
(ii) मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Human experimental psychology)
(iii) पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Animal experimental psychology)
(iv) दैहिक मनोविज्ञान (Physiological psychology)
(v) परिणात्मक मनोविज्ञान (Quantitative psychology)
(vi) व्यक्तित्व मनोविज्ञान (Personality psychology)
(vii) समाज मोनविज्ञान (social psychology)
(viii) शिक्षा मनोविज्ञान (Educational psychology)
(ix) संज्ञात्मक मनोविज्ञान (Cognitive psychology)
(x) असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal psychology)
(i) जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान (Life-span developmental psychology) –
बाल मनोविज्ञान का प्रारंभिक संबंध मात्र बाल विकास (Child development) के अध्ययन से था परन्तु हाल के वर्षों में विकासात्मक मनोविज्ञन में किशोरावस्था, वयस्कावस्था तथा वृद्धावस्था के अध्ययन पर भी बल डाला गया है। यही कारण है कि इसे जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान कहा जाता है। विकासात्मक मनोविज्ञान में मनोविज्ञानी मानव के लगभग प्रत्येक क्षेत्र जैसे- बुद्धि, पेशीय विकास, सांवेगिक विकास, सामाजिक विकास, खेल, भाषा विकास का अध्ययन विकासात्मक दृष्टिकोण से करते हैं। इसमें कुछ विशेष कारक जैसे- आनुवंशिकता, परिपक्वता, पारिवारिक पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक अन्तर (socio-economic differences) का व्यवहार के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है। कुल मनोविज्ञानियों के 5% मनोवैज्ञानिक विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं।
(ii) मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Human experimental psychology)-
मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान मनोविज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ मानव के उन सभी व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है जिस पर प्रयोग करना संभव है। सैद्धान्तिक रूप से ऐसे तो मानव व्यवहार के किसी भी पहलू पर प्रयोग किया जा सकता है परन्तु मनोविज्ञानी उसी पहलू पर प्रयोग करने की कोशिश करते हैं जिसे पृथक किया जा सके तथा जिसके अध्ययन की प्रक्रिया सरल हो। इस तरह से दृष्टि, श्रवण, चिंतन, सीखना आदि जैसे व्यवहारों का प्रयोगात्मक अध्ययन काफी अधिक किया गया है। मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में उन मनोवैज्ञानिकों ने काफी अभिरुचि दिखलाया है जिन्हें प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का संस्थापक कहा जाता है। इनमें विलियम वुण्ट, टिचेनर तथा वाटसन आदि के नाम अधिक मशहूर हैं।
(iii) पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Animal experimental psychology) –
मनोविज्ञान का यह क्षेत्र म�
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